मौनी अमावस्या की पौराणिक व्रत कथा एवं पूजा विधि:

मौनी अमावस्या की पौराणिक व्रत कथा एवं पूजा विधि:

मौनी अमावस्या के साथ कोई विशिष्ट "मौनी व्रत" नहीं जुड़ा है, लेकिन व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक प्रथाओं के हिस्से के रूप में इस दिन उपवास करना या कुछ पूजा विधियों में शामिल होना चुन सकते हैं। यदि आप मौनी अमावस्या के उत्सव में उपवास और पूजा को शामिल करने में रुचि रखते हैं, तो यहां एक सामान्य मार्गदर्शिका दी गई है:

पौराणिक कथाओं के अनुसार मौनी अमावस्या के दिन मनु ऋषि का जन्म हुआ था, इस दिन मौन व्रत कर विधिवत श्रीहरि भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से मुनि पद की प्राप्ति होती है। सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार जब सूर्य और चंद्रमा के बीच का अंतर शून्य हो जाता है तो अमावस्या तिथि का योग बनता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अमावस्या की तिथि भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। मौनी अमावस्या पर मौन धारण कर स्नान करने का विधान है। इस दिन पीपल के पेड़ व भगवान विष्णु की विधिवत पूजन भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार बिना व्रत कथा पाठ किए किसी भी व्रत को पूर्ण नहीं माना जाता।

मौनी अमावस्या व्रत:( व्रत का प्रकार चुनें:)

तय करें कि आप पूर्ण उपवास (कोई भोजन या पानी नहीं) या आंशिक उपवास (विशिष्ट खाद्य पदार्थों या तरल पदार्थों का सेवन) रखना चाहते हैं। कुछ लोग कुछ विशेष प्रकार के भोजन से परहेज करना या सात्विक (शुद्ध) आहार का पालन करना चुनते हैं। इरादे निर्धारित करें: व्रत शुरू करने से पहले स्पष्ट इरादे तय कर लें। उन आध्यात्मिक लक्ष्यों पर विचार करें जिन्हें आप मौनी अमावस्या के माध्यम से प्राप्त करना चाहते हैं। प्रार्थना से शुरुआत करें: दिन की शुरुआत किसी प्रार्थना या मंत्र से करें। अपनी श्रद्धा व्यक्त करें और सफल और सार्थक व्रत के लिए आशीर्वाद मांगें।
चुप्पी बनाए रखें: जैसा कि "मौनी" सुझाव देते हैं, पूरे दिन मौन रहने या अपनी वाणी को सीमित रखने का प्रयास करें। आंतरिक चिंतन और सचेतनता पर ध्यान दें।
ध्यान और चिंतन:
ध्यान और चिंतन में समय व्यतीत करें। अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर विचार करें, आत्म-सुधार के लिए लक्ष्य निर्धारित करें और अपने आंतरिक स्व से जुड़ें।अगर आप मौनी अमावस्या के दिन व्रत रख रहे हैं तो इस व्रत कथा को जरूर सुनें।

मौनी अमावस्या पूजा विधि:

स्नान अनुष्ठान: प्रातःकाल विधिपूर्वक स्नान करें। यदि उपलब्ध हो तो अपने नहाने के पानी में गंगा जल या पवित्र जल की कुछ बूंदें मिलाएं।
पूजा और भक्ति: पूजा के लिए एक पवित्र स्थान स्थापित करें। धूप जलाएं, फूल चढ़ाएं और दीपक जलाएं। ईश्वर को अपनी प्रार्थनाएँ अर्पित करें, कृतज्ञता व्यक्त करें और आशीर्वाद माँगें।
मंत्र जाप: पवित्र मंत्रों का जाप एक आम प्रथा है। आप महा मृत्युंजय मंत्र, गायत्री मंत्र, या किसी अन्य मंत्र का जाप कर सकते हैं जो आपके अनुरूप हो।
प्रस्ताव: जिस देवता की आप पूजा कर रहे हैं उन्हें फल, दूध और मिठाई जैसे सरल और शुद्ध प्रसाद अर्पित करें। यदि आपके पास कोई विशिष्ट देवता है जिसका आप पालन करते हैं, तो उसके अनुसार अपनी पेशकशें तैयार करें।
धर्मग्रंथ पढ़ना: आध्यात्मिक ग्रंथ या धर्मग्रंथ पढ़ने में समय व्यतीत करें। शिक्षाओं पर मनन करें और उन्हें अपने जीवन में लागू करने का प्रयास करें।
धर्मार्थ कार्य: धर्मार्थ योगदान देने पर विचार करें, चाहे वह जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े या धन दान करना हो। दयालुता और उदारता के कार्यों को अत्यधिक प्रोत्साहित किया जाता है।
याद रखें कि इन प्रथाओं को व्यक्तिगत प्राथमिकताओं और विश्वासों के आधार पर अपनाया जा सकता है। आध्यात्मिक विकास और आंतरिक शुद्धि की तलाश में मौनी अमावस्या को सच्चे और केंद्रित दिल से मनाने की कुंजी है। ऐसा कहा जाता है कि मौनी अमावस्‍या के दिन गंगा जल अमृत में बदल जाता है। इस दिन अगर आप व्रत रख रहे हैं तो प्रात उठ कर सबसे पहले स्नान करें और फिर भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करें। साथ ही मौनी अमावस्या की व्रत कथा सुनें।

मौनी अमावस्या की पौराणिक कथा

प्राचीन काल में कांचीपुरी में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था, उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके सात पुत्र और एक पुत्री थी, पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राम्हण ने सातों पुत्रों का विवाह करने के बाद बेटी के लिए वर तलाश करने के लिए अपने सबसे बड़े पुत्र को भेजा। उसने एक ज्योतिषी को कन्या की कुण्डली दिखाई, उसने बताया कि विवाह होते ही कन्या विधवा हो जाएगी। ज्योतिषी की बात सुन ब्राह्मण दुखी हो गया और उसने इसका उपाय पूछा।

उपाय पूछे जाने पर, ब्राह्मण ने बताया कि सिंहल द्वीप पर एक सोमा नामक धोबिन रहती है, यदि कन्या की शादी से पहले घर आकर वह पूजन करे तो यह दोष दूर हो जाएगा। ब्राम्हण ने गुणवती को अपने सबसे छोटे पुत्र के साथ सिंहलद्वीप भेजा, दोनों सागर किनारे पहुंचकर उसे पार करने की कोशिश करने लगे। जब समुद्र को पार करने का कोई रास्ता नहीं मिला तो भूखे प्यासे एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने लगे। पेड़ पर घोसले में एक गिद्ध का परिवार रहता था। उस समय घोसले में सिर्फ गिद्ध के बच्चे थे, वे सुबह से भाई बहन के क्रियाकलापों को देख रहे थे।

शाम को जब गिद्ध के बच्चों की मां भोजन लेकर घोसले में आई तो वे उस भाई बहन की कहानी को बताने लगे। उनकी बात सुनकर गिद्ध की मां को नीचे बैठे भाई बहन पर काफी दया आई और बच्चों को आश्वासन दिया कि वह उनकी समस्या का समाधान करेगी। यह सुनकर गिद्ध के बच्चों ने भोजन ग्रहंण किया।

दया और ममता से वशीभूत गिद्ध माता उनके पास आई और बोली कि मैंने आपकी समस्याओं को जान लिया है। इस वन में जो भी फल फूल मिलेगा मैं आपके लिए ले आती हूं तथा प्रात: काल मैं आपको सिंहलद्वीप धोबिन के पास पहुंचा दूंगी। अगले दिन सुबह होते ही गिद्ध माता ने दोनों भाई बहनों को समुद्र पार कराकर सिंहलद्वीप सोमा के पास पहुंचा दिया।

गुणवती प्रतिदिन सुबह सूर्योदय से पहले सोमा का घर लीप दिया करती थी, एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा कि प्रतिदिन सुबह हमारा घर कौन लीपता है। बहुओं ने तारीफ बटोरने के लिए कहा कि हमारे अलावा और कौन ऐसा करेगा, लेकिन सोमा को उनकी बातों पर यकीन नहीं हुआ और वह यह जानने के लिए पूरी रात जागती रही। तभी उसने सुबह गुणवती को घर साफ करते हुए देख लिया और उससे उसकी परेशानी पूछा। गुणवती ने अपनी परेशानी बताया, जिसे सुन सोमा चिंतित हो गई और उसके घर जाकर पूजापाठ करने के लिए तैयार हो गई।

सोमा ने ब्राह्मण के घर आकर पूजा किया, लेकिन इसके बावजूद गुणवती का विवाह होते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। तब सोमा ने अपने सभी पुण्य गुणवती को दान कर दिया, जिससे उसका पति जीवित हो गया। लेकिन पुण्यों की कमी से सोमा के पति और बेटे की मृत्यु हो गई। सोमा ने सिंहलद्वीप लौटते हुए रास्ते में पीपल वृक्ष की छाया में विष्णु जी का पूजन कर 108 बार पीपल की परिक्रमा की। इसके पुण्य प्रताप से परिवार के सभी सदस्य जीवित हो उठे।
इस प्रकार मौनी अमावस्या के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान कर विधिवत भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने व पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है तथा परिवार के सदस्यों पर भगवान का आशीर्वाद सदैव बना रहता है।

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