गणेश चतुर्थी संपूर्ण व्रत कथा

गणेश चतुर्थी संपूर्ण व्रत कथा

एक समय की बात है कि प्रसेनजित उस मणि को पहने हुए ही कृष्णजी के साथ वन में आखेट के लिए गए। अशुचिता के कारण अश्वारूढ़ प्रसेनजित को एक शेर ने मार डाला। उस सिंह को रत्न लेकर जाते देखकर जाम्बवान ने मार डाला। जाम्बवान ने उस मणि को गुफा में लाकर अपने बेटे को दे दिया । इधर श्रीकृष्ण जी अपने सहयोगी शिकारियों के साथ द्वारिका में लौट आये।

समस्त द्वारिकावासियों ने अकेले कृष्ण को आया देखकर ऐसा अनुमान लगाया कि मणि के लोभ में कृष्ण ने प्रसेनजित की हत्या कर डाली है। ऐसा कौन-सा अधर्म है जो लोभी के लिए करणीय न हो। लोभी तो अपने गुरुजनों का भी वध कर डालता है- इसी प्रकार की चर्चा सब लोग करने लगे। झूठे दोषारोपण से कृष्ण जी के मन में बहुत ही दुःख हुआ और वे किसी से बिना कुछ कहे सुने लोगों को साथ लेकर नगर से बाहर चले गये। वन में जाकर कृष्ण ने देखा कि एक स्थान पर प्रसेनजित सिंह द्वारा मृत होकर पड़े हैं। सवारी के साथ प्रसेनजित के पदचिन्हों के सहारे वहां गए जहां ऋक्ष ने सिंह को मारा था। रक्तबिन्दु के आधार पर श्रीकृष्ण उसकी गुफा में घुस गये ऋक्षराज की गुफा बहुत ही भयंकर थी और उसमें गहन अंधेरा था अतः प्रजाजनों को गुफा द्वार पर छोड़कर भगवान कृष्ण अकेले ही उसमें प्रविष्ट हो गए। अपने तेज से अन्धकार निवारण करते हुए भगवान उस गुफा में चार सौ कोस तक चले गए। वहां पहुंचने पर उन्होंने रमणीक स्थान एवं महल को देखा। वहां पर जाम्बवान का पुत्र सुन्दर पालने में झूल रहा था और पालने में मणिरत्न लटक रहे थे। बालक के उस खिलौना स्वरूप मणि को लेने के लिए भगवान कृष्ण उसके निकट खड़े हो गये।

रूप लावण्य से पूर्ण कमलनयनी किशोरी उस पालने को झुला रही थी। वह मन्द मुस्कान भी बिखेर रही थी ऐसी नवयुवती बाला को देख कर कृष्ण जी विस्मित हो गये। वह कमल मुखी बाला धीरे-धीरे कह रही थी कि लाड़ले! तुम क्यों रो रहे हो? देखो, प्रसेनजित को सिंह ने मार डाला और सिंह को हमारे पिता जी ने मारकर, यह स्यमन्तक मणि तुझे खेलने के लिए ला दी है। कमल नयन भगवान कृष्ण को देखकर वह वाला कामातुर होकर धीरे-धीरे प्यार भरी बात कहने लगी कि मेरे पिता की दृष्टि पड़ने से पहले ही आप यहां से चले जाइए। यह सुनकर प्रतापवान कृष्ण जी हंसकर अपना पांचजन्य शंख बजाने लगे। उस शंखनाद से ऋक्षराज घबड़ाकर उठ बैठा और उनके पास चला आया। फलस्वरूप भगवान कृष्ण और जाम्बवान में परस्पर तुमुल युद्ध होने लगा। इस दृश्य से सभी नारियां चीत्कार करने लगीं और गुफा के नागरिक आश्चर्य में पड़ गये। उधर गुफा द्वार पर कृष्ण की प्रतीक्षा कर रहे पुरजन उन्हें मृत समझकर सातवें दिन द्वारिका लौट गये। वहां पहुंच कर उन लोगों ने उनका मृतक कर्म कर डाला। इधर गुफा के अन्दर भगवान कृष्ण और ऋक्षराज में इक्कीस दिनों तक लगातार मल्लयुद्ध होता रहा। भगवान कृष्ण ने ऋक्षराज के युद्धोन्माद को क्षीण कर दिया। त्रेतायुग की बातों का स्मरण कर जाम्बवान ने भगवान को पहचान लिया । जाम्बवान कहने लगे कि मैं सभी देवों, दैत्यों, यक्षों, नागों, गन्धर्वो.

पिशाचों और मरुदगणों से अपराजेय हैं वे लोग मेरे पराक्रम के समक्ष नहीं टिक सकते। हे देवाधिदेव! आपने मेरे पर विजय पायी है, इससे आपका देवाधिपति होना निश्चित है। मैं समझ गया कि आप में भगवान विष्णु का तेज है, किसी अन्य में इतना बल नहीं हो सकता। जिसके किंचित कृपाकटाक्ष से चारों पदार्थ सुलभ हो जाते हैं, उसके किंचित रोष से घड़ियाल, मगरमच्छ आदि जीव व्याकुल हो गये और अथाह सागर भी विक्षुब्ध हो उठा। उस सागर ने अपनी धृष्टता के लिए क्षमा याचना की और सेना के लिए मार्ग प्रदान किया। आपने सेतु बांध कर अपने यश को उज्जवल किया और सैन्यदल के साल लंका पर आक्रमण करके राक्षसों का अपने बाणों द्वारा शिरच्छेदन किया। आप त्रेतायुग के वही धनुर्धारी राम हैं। हे महाराज! जब जाम्बवान ने पहचान लिया तो उससे देवकी नन्दन श्रीकृष्ण जी कहने लगे।

भगवान कृष्ण ऋक्षराज के मस्तक पर अपना कल्याणकारी हाथ फेरते हुए उससे प्रेमपूर्वक कहने लगे। हे ऋक्षराज! इस मणि के कारण मुझे झूठा कलंक लगा है। उसी कलंक के निवारणार्थ मणि प्राप्त करने के लिए मैं तुम्हारी गुफा में आया है। भगवान की बात सुनकर जाम्बवान ने प्रसन्नता पूर्वक अपनी कन्या जाम्बवती को उन्हें समर्पित करके, दहेज स्वरूप मणि भी दे दी। भगवान कृष्ण ने कन्या और मणि ग्रहण कर जाम्बवान के दुर्लभ ज्ञान का उपदेश देकर जाने का विचार किया। भगवान कृष्ण के जाने से पहले जाम्बवान ने अपनी कन्या का पाणिग्रहण उनके साथ कर दिया। जाम्बवती के साथ मणि लेकर भगवान कृष्ण प्रसन्न मन से द्वारिका आये जिस प्रकार किसी मृतक के पुनरुज्जीवित होने पर उसके परिवार वालों के हर्ष की सीमा नहीं रहती, वही अवस्था कृष्णा को देखकर द्वारिकावासियों की हुई श्रीकृष्ण को धर्मपत्नी के

साथ मणि लेकर लौटा देखकर सभी लोग उत्सव मनाने लगे। भगवान कृष्ण प्रसन्न होकर मित्र वर्ग के साथ सुधर्मा सभा अर्थात यादवों की राज्यसभा में आये। वहां उन्होंने मणि के गायब होने और उसकी पुनः प्राप्ति की सारी घटना को कह सुनाया। भगवान कृष्ण ने राज्यसभा में उपस्थित सत्राजित को अपने पास बुलाकर उसे वह मणि दे दी। यादव संसद सदस्यों के सामने मणि देकर भगवान झूठे कलंक के दोष से मुक्त हो गये।

सत्राजित बुद्धिमान थे। मणि पाकर उन्हें लज्जा आई जिसके फलस्वरूप उन्होंने अपनी कन्या सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया। इसके बाद शतधन्वा, अक्रूर आदि दूषित हृदय वाले यादव मणि प्राप्ति के. लिए सत्राजित से शत्रुता करने लगे। एक बार की बात है कि श्रीकृष्ण जी कहीं गये हुए थे। उनकी अनुपस्थिति में पापात्मा शतन्धवा ने सत्राजित की हत्या करके मणि अपने कब्जे में कर ली ।

श्रीकृष्ण के लौटने पर सत्यभामा ने उन्हें सारी बातें बतलाई एक बार नगर में पुनः चर्चा उठी कि ये कृष्ण भीतर से तो काले अर्थात कलुषित हृदय वाले हैं और ऊपर से सीधे दीखते हैं। तब भगवान कृष्ण ने बलदेव जी से कहा कि भैया, शतधन्वा ने सत्राजित का वध कर डाला है। अतः अब वह मणि के साथ पलायन करने वाला है। शतधन्वा ने सत्राजित की हत्या करके हम लोगों की मणि का अपहरण कर लिया है। वह मणि हम लोगों के लिए भोग्य है, इसमें कोई सन्देह नहीं है। यह बात जब शतधन्वा को मालूम हुई तो उसने भयभीत होकर मणि को अकूर को दे दिया। मणि देने के पश्चात वह एक घोड़ी पर आरूढ़ होकर दक्षिण की ओर भाग गया। इधर रथारूढ़ होकर बलराम और श्रीकृष्ण उसका पीछा

करने लगे सौ योजन के बाद उसकी घोड़ी मार डाली गई, तब वह पैदल ही भागा। श्रीकृष्ण जी ने दौड़कर उसे पकड़ लिया और उसका वध कर डाला। मणि के लिए इच्छुक कृष्ण जी ने रथारूढ़ बलदेव से कहा कि भैया! इसके पास से तो मणि नहीं मिली। कृष्ण की बात से बलराम जी ने रुष्ट होकर कहा-कृष्ण! तुमने सदैव से कपट का व्यवहार किया है। तुमसे बढ़कर लोलुप और पापी कोई अन्य व्यक्ति नहीं होगा। जब तुम धन के लोभ में पड़कर अपने सगे सम्बन्धियों की हत्या करने में भी नहीं चूकते तो ऐसा कौन भाई बन्धु होगा जो तुम्हारा साथ दे। तदनन्तर बलराम जी की तुष्टि के लिए श्रीकृष्ण ने शपथ के द्वारा उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास किया।

ऐसे मिथ्यापवाद के क्लेश को सहन करना धिक्कार है ऐसा कहकर बलदेव जी बगर (विदर्भ) देश की ओर चले गये और कृष्ण जी रथ में सवार होकर द्वारकापुरी में वापस लौट आये। कृष्ण के लौटने पर द्वारकावासी पुनः चर्चा करने ने कि कृष्ण ने अपने बड़े भाई बलराम जी को द्वारका से बाहर निकालकर अच्छा काम नहीं किया। मणि के लोभ में उन्हें ऐसा करना उचित नहीं था। इस लोकापवाद से श्रीकृष्ण के मन में बहुत ही खेद हुआ और उनका चेहरा मुरझा गया। इधर अक्रूर भी तीर्थाटन के लिए द्वारका से निकल पड़े। उन्होंने काशीपुरी में आकर यज्ञपति भगवान के लिए विष्णुयोग किया। अक्रूर ने उस मणि द्वारा दैनिक स्वर्ण प्राप्ति के द्वारा सभी लोगों को दक्षिणा देकर सन्तुष्ट किया। नगर में विभिन्न देवों के मन्दिरों का निर्माण कराया।

सूर्य द्वारा प्रदत्त उस मणि को सदैव अक्रूर पवित्रता के साथ धारण करते थे। फलस्वरूप वे जहां भी रहते, वहाँ न तो कभी अकार ही पड़ता था और न व्याधिजनित किसी रोग का ही प्रकोप होता था। भगवान कृष्ण सर्वज्ञ थे, वे सभी बातों को जानते थे। मनुष्य देहधारी होने के कारण लोकाचार के लिए, मायाविष्टता में अपनी अज्ञानता प्रकट करते थे। देखो तो मणि के कारण भाई बलराम जी से विरोध हुआ, बार-बार तरह-तरह के अभियोग लगते रहे। अतः इतना कलंक कहां तक सहा जाय? कृष्ण जी की इस चिन्तातुरावस्था में ही वहाँ नारद जी आ पहुँचे। भगवान द्वारा अभ्यर्थित होकर, आसन पर सुखपूर्वक बैठकर मुनि कहने लगे। नारद जी ने कहा कि हे भगवान! आप खिन्न क्यों दिखाई पड़ रहे हैं। आप किस चिन्ता में पड़े हुए हैं। हे केशव ! आप सम्पूर्ण वृत्तान्त मुझसे कहें।

श्रीकृष्ण जी ने कहा कि हे देवर्षि नारद! मुझे बार-बार अकारण कलंक लग रहा है, इस कारण मुझे अत्यन्त पश्चाताप है। मैं आपकी शरण में हूं, आप मुझे चिन्ता रहित कीजिए। नारद जी ने कहा कि हे देव! आप पर लगने वाले कलंक का कारण मैं जानता हूं। आपने भादों सुदी चतुर्थी को चन्द्रदर्शन किया है। इसीलिए आपको बार-बार कलंकित होना पड़ रहा है। नारद जी की बात सुनकर भगवान कृष्ण सारगर्भित वाणी में कहने लगे कि हे देवर्षि नारद जी ! चतुर्थी के चद्रदर्शन से कैसे दोष लगता है, जबकि द्वितीया के चांद का लोग दर्शन करते हैं और उसका सुन्दर फलं पाते हैं।

नारद जी ने कहा कि स्वयं गणेश जी ने दर्शनीय रूप वाले अर्थात सुन्दरतम रूप पर गर्व करने वाले चन्द्रमा को श्राप दिया है कि आज के दिन जो लोग तुम्हारे दर्शन करेंगे, समाज में उन्हें व्यर्थ ही निन्दा का पात्र होना पड़ेगा श्रीकृष्ण जी ने पूछा कि हे मुनिवर अमृत की वृष्टि करने वाले चन्द्रमा को गणेश जी ने क्यों शाप दिया? आप सर्वोत्तम उपाख्यान का विस्तृत वर्णन कीजिए। नारद जी ने उत्तर दिया कि प्राचीन काल में ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने मिलकर गणेश जी को अष्टसिद्धि तथा नवनिधि को पत्नी स्वरूप प्रदान किया। तदनन्तर शास्त्रोक्त विधि से गणेश जी की पूजा करके, उन्हें सम्पूर्ण देवों में अग्रणी बनाकर प्रजापति ब्रह्मा जी उनकी स्तुति करने लगे।

ब्रह्मा जी ने कहा कि हे हाथी सदृश मुख वाले! हे गणपति! हे लम्बोदर! हे वरदायक! हे समस्त विद्याओं के अधिपति! हे देवताओं के अधिनायक! हे सृष्टिकर्ता, पालक एवं संहारकर्ता गणेश जी जो लोग भक्तिपूर्वक आपको लड्डू बढ़ाकर पूजन करेंगे, उनके सभी विघ्न दूर हो जायेंगे और दुर्लभ सिद्धि प्राप्त होगी, इसमें संशय नहीं, जो देवता या दानव आपकी पूजा किए बिना सफलता की कामना करते हैं, उन्हें अरबों कल्प तक भी सिद्धि नहीं मिलती। हे गणाध्यक्ष! आपके कृपा कटाक्ष के बल पर सदा विष्णु पालन करते हैं तथा शिवजी संहार करते है। ऐसी स्थिति में मेरी सामर्थ्य नहीं है जो मैं आपकी स्तुति कर सकूं? ब्रह्मा जी के मुख से ऐसी स्तुति सुनकर गणेश जी ने विश्व के अधिपति ब्रह्मा जी से प्रेम पूर्वक कहा-

गणेश जी ने कहा कि हे जगत के रचियता ब्रह्मा जी मैं आपकी भक्ति पूर्ण निश्छल स्तुति से अत्यन्त प्रसन्न हूं। आपकी जो इच्छा हो मुझसे वर के रूप में मांग लीजिए, मैं उसे पूर्ण करूंगा । ब्रह्मा जी ने कहा कि हे प्रभु सृष्टि के रचनाकाल में मुझे किसी प्रकार की बाधा न हो। यह सुनकर गणेश जी ने प्रसन्न मन से मुस्कराते हुए कहा- ऐसा ही होगा अर्थात आपका कार्य निर्विघ्न रूप से चलता रहेगा। ब्रह्मा जी अभीष्ट वरदान पाकर अपने लोक को चले गये। इधर स्वेच्छा से भ्रमण करने वाले गणेश जी ने सत्यलोक से चलकर, अपना अद्वितीय स्वरूप धारण किया, आकाश मार्ग से चन्द्रलोक में जा पहुंचे। रूपशाली चन्द्रमा ने गणेश जी के ऐसे हास्य योग्य स्वरूप को देखा जिसमें उनकी लम्बी सैंड, सूप के समान कान, लम्बे दांत, भारी भरकम तोंदीला पेट और चूहे के वाहन पर आसीन है। ऐसे विस्मयकारी रूप को देखने से रूपगर्वित चन्द्रमा को हंसी आ गई। चन्द्रमा के हंसने से गणेश जी कुपित हो गये, उनकी आंखें क्रोध से लाल हो गई। उन्होंने चन्द्रमा को शाप दिया कि तुम दर्शनीय एवं सुन्दर रूप वाले मुझको देखकर हंस रहे हो।

गणेश जी ने कहा कि चन्द्रमा-तुम मददर्पित हो रहे हो। इसका फल तुम्हें बहुत जल्द भोगना होगा। आज से शुक्ल चतुर्थी के दिन कोई भी व्यक्ति तुम्हारे पापी मुंह को नहीं देखेगा। जो व्यक्ति भूल से भी तुम्हारे मुख को देख लेगा उसे अवश्य कलंकित होना पड़ेगा। नारद जी कहते हैं कि हे कृष्ण जी ! ऐसा भीषण शाप सुनकर विश्व में हाहाकार मच गया और चन्द्रमा का मुख मलिन हो गया तथा वे जल में प्रविष्ट हो गए। उसी दिन से चन्द्रमा अपना स्थान जल में बनाकर रहने लगे। इधर देवता, ऋषि और गन्धर्वो को बड़ी निराशा हुई और वे सब दुखी होकर देवराज इन्द्र के नेतृत्व में पितामह ब्रह्मा जी के लोक में गये। ब्रह्मा जी का दर्शन करने के बाद उन लोगों ने चन्द्रमा के वृत्तान्त का वर्णन कर दिया, कि आज गणेश जी ने चन्द्रमा को शाप दे दिया है। तब ब्रह्मा जी ने सोचकर उन देवताओं से कहा कि है देवताओं! गणेश जी के शाप को कोई काट नहीं सकता है। न तो मैं ही काट सकता हूँ और न विष्णु, इन्द्रादि देवता ही ऐसा निश्चय जानिए इसलिए हे देवों आप उन्हीं की शरण में जायें। वे ही चन्द्रमा को शाप मुक्त कर सकते हैं।

देवताओं ने पूछा कि हे पितामह! हे अतीव बुद्धिशाली हे प्रभु! किस उपाय से गजानन प्रसन्न होकर वर देंगे? 'आप उसी उपाय को बतलाइए। ब्रह्मा जी ने कहा कि गणेश जी का पूजन विशेषतया कृष्ण चतुर्थी को रात्रि में यत्न पूर्वक करना चाहिए। शुद्ध घी में उन्हें मालपूआ, लड्डू आदि बनाकर भोग लगाना चाहिए। स्वयं भी इच्छापूर्वक मिष्ठान्न, हलुवा, पूरी, खीर आदि का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। ब्राह्मणों को दान स्वरूप गणेश जी की स्वर्ण प्रतिमा देनी चाहिए। शक्ति के अनुसार दक्षिणा दें, धन रहते हुए कृपणता नहीं करनी चाहिए। पूजन व्रतादि की विधि जानकर सब देवताओं ने देवगुरु बृहस्पति को भेजा और उन्होंने चन्द्रमा के पास जाकर ब्रह्मा जी की बताई हुई विधि सुनाई। चन्द्रमा ने ब्रह्मा जी की बताई हुई विधि के द्वारा गणेश जी का व्रत एवं पूजन किया। जिसके फलस्वरूप प्रसन्न होकर भगवान गणेश जी प्रसन्न हो गए। अपने सम्मुख गणेश जी को कीड़ा करते हुए देखकर चन्द्रदेव उनकी स्तुति करने लगे।

चन्द्रमा ने कहा है विभो। आप समस्त कारणों में आदि कारण आप सर्वज्ञ एवं सबके जानने योग्य हैं, आप मुझ पर प्रसन्न होइए। हे देवाधिपति! हे जगन्निवास हे लम्बोदर हे वक्रतुण्ड हे गणेश जी ! हे ब्रह्मा विष्णु से पूजित! मैंने गर्व के कारण आपका उपहास किया था, उसके लिए मैं आपसे क्षमा प्रार्थी हूं। आप मुझ पर प्रसन्न होइए। हे गणेश जी ! जो आपकी पूजा न करके अर्थ सिद्धि की इच्छा रखते हैं। वे वास्तव में मूर्ख और संसार में अभागे हैं। मुझे अब आपके सम्पूर्ण प्रभाव का ज्ञान हो गया है। जो पापात्मा आपकी पूजा से विमुख रहते हैं, उन्हें नर्क में भी स्थान नहीं मिलता। चन्द्रमा द्वारा ऐसी स्तुति सुनकर गणेश जी हंसते हुए मेघ के समान गुरु गर्जना में बोले।

गणेश जी ने कहा कि हे चन्द्रमा! मैं तुम्हारे ऊपर प्रसन्न हूं। तुम्हारी जो इच्छा हो वह तुम मुझसे वरदान के रूप में मांग लो मैं तुम्हें देने के लिए 1 तैयार हूं। चन्द्रमा ने कहा कि मेरा दर्शन सभी लोग पुनः पूर्ववत् करने लगे। चन्द्रमा ने कहा कि हे गणेश्वर। आपकी कृपा से मेरे पाप-शाप दूर हो जायें । यह सुनकर गणेश जी ने कहा कि हे चन्द्र मैं तुम्हें इसके बदले दूसरा वरदान दे सकता हूँ। किन्तु यह नहीं दे सकता। विघ्नेश्वर गणेश जी के ऐसे वचन को सुनकर ब्रह्मादि देवगण अत्यन्त भयभीत होकर भक्तवत्सल गणेश जी की प्रार्थना करने लगे। देवता लोग निवेदन करने लगे कि हे देवाधिदेव! आप चन्द्रमा को शाप मुक्त कर दें, यही वरदान हम सभी आपसे चाहते हैं। आप ब्रह्मा जी के बड़प्पन का विचार कर चन्द्रमा को शापामुक्त कर दें। देवताओं की बात सुनकर गणेश जी ने बड़े ही आदर के साथ कहा कि आप लोग मेरे भक्त है, अतः मैं आप लोगों को अभीष्ट वर प्रदान करता हूं।

गणेश जी ने कहा कि जो लोग भादों सुदी चौथ को चन्द्रमा का दर्शन करेंगे उन्हें मिथ्या कलंक तो अवश्य ही लगेगा, इसमें कोई भी सन्देह नही है किन्तु महीने के आरम्भ में, शुक्ल द्वितीया के दिन जो व्यक्ति हर महीने में निरन्तर तुम्हारा दर्शन करते रहेंगे, उन्हें भादों सुदी चौथ के दर्शन का दुष्परिणाम नहीं भोगना होगा। नारद जी कहते हैं कि हे कृष्ण! तभी से द्वितीया के दिन सब लोग आदर पूर्वक चन्द्र दर्शन करने लगे। स्वयं गणेश जी ने द्वितीया के चन्द्रदर्शन की महत्ता का वर्णन किया है। किन्तु दूज के चन्द्रमा का दर्शन करने वाले जो पापात्मा भाद्र शुक्ल चतुर्थी को तुम्हारा दर्शन करेंगे उन्हें एक वर्ष के भीतर ही मिथ्या कलंक का भागी होना पड़ेगा। इसके पश्चात् चन्द्रमा ने गणेश जी से पुनः पूछा कि यदि ऐसी घटना घटित हो जाये तो हे देवाधिपति! आप किस उपाय से प्रसन्न होंगे, यह बताने की कृपा कीजिए। श्री गणेश जी ने कहा कि कृष्ण पक्ष की प्रत्येक चतुर्थी को जो लोग

लड्डू का भोग लगाकर मेरा पूजन करेंगे और विधि पूर्वक रोहिणी के साथ तुम्हारी पूजा करेंगे। जो लोग मेरी स्वर्ण प्रतिमा का पूजन करके कथा श्रवण करेंगे एवं ब्राह्मण भोजन करा कर उन्हें दान देंगे तो मैं सदैव उनके कष्टों का निवारण करता रहू्ंगा। यदि स्वर्ण प्रतिमा निर्मित कराने की क्षमता न हो तो मिट्टी की प्रतिमा का विविध सुगन्धित फूलों से मेरी पूजा करें, फिर प्रसन्न मन से ब्राह्मण को भोजन कराकर विधिपूर्वक पूजन के बाद कथा सुनकर वर्णित द्वारा ब्राह्मण को समर्पण करें कि हे देवदेव गणेश जी ! आप हमारे इस दान से प्रसन्न होइए और सदैव सभी समय हे देव! आप हमारे कार्यों को निर्विघ्न पूरा करें। आप सम्मान, उन्नति, धन धान्य, पुत्र-पौत्रादि देते रहें। हमारे वंश में विद्वान, गुणी और आपके भक्त पुत्र उत्पन्न होते रहें। तदनन्तर ब्राह्मण को यथाशक्ति दान की दक्षिणा दें। नमकीन पदार्थों से विरहित होकर लड्डू, मालपुआ, खीर आदि मीठे पदार्थों का ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं इच्छानुसार भोजन करें तथा इस प्रकार व्रत रहकर पूजन करें तो मैं सदा विजय, कार्य में सिद्धि, धन-धान्य, विपुल सन्तति देता रहूँगा। इस प्रकार कह कर सिद्धिविनायक गणेश जी अन्तर्धान हो गये।

नारद जी ने कहा कि हे कृष्ण जी! आप भी इस व्रत को कीजिए । आपका कलंक छूट जाएगा। तब नारद जी के आदेशानुसार भगवान कृष्ण ने अनुष्ठान किया। इस प्रकार करने से श्रीकृष्ण कलंक से हो गये मुक्त नारद जी कहते हैं कि जो कोई आपके स्यमन्तक मणि के उपाख्यान को सुनेंगे, चन्द्रमा के चरित्र का कथानक सुनेंगे, उन्हें भाद्रशुक्ल चतुर्थी के चन्द्र दर्शन का दोष नहीं लगेगा। जब भी मानसिक संकट या किसी तरह का संशय उत्पन्न हो, चन्द्रमा का दर्शन भूल से हो जाय तो उसके निमित्त इस कथा को सुनना चाहिए। ऐसा देवताओं ने वर्णन किया है कि कृष्ण जी ने गणेश जी की आराधना करके व्रत और पूजन से उन्हें प्रसन्न किया। अतः मनुष्यों को चाहिए कि इस क्लेशापहारक कथा को अवश्य ही सुनें। नर अथवा नारी पर किसी प्रकार का संकट आने पर इस व्रत के करने से उनके सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। विघ्नविनाशक गणेश जी की प्रसन्नता से मनुष्य को संसार में सभी पदार्थ सुलभ हो जाते हैं।

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गणेश चतुर्थी 2023: विनायक चतुर्दशी पूजा की तिथि, समय और मुहूर्त

गणेश चतुर्थी 2023: विनायक चतुर्दशी की तिथि, समय और मुहूर्त हिंदू कैलेंडर के अनुसार, विनायक चतुर्दशी 2023 सोमवार, 18 सितंबर को दोपहर 12:39 बजे शुरू होगी और मंगलवार, 19 सितंबर को रात 8:43 बजे समाप्त होगी। इसके अलावा,...

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नवदुर्गा: माँ दुर्गा के 9 रूप ।

। । या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: । । देवी माँ या निर्मल चेतना स्वयं को सभी रूपों में प्रत्यक्ष करती है,और सभी नाम ग्रहण करती है। माँ दुर्गा के...

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कौवे की गरूड़ से दोस्ती

कौवे की गरुड़ से दोस्ती कहानी महाभारत (महाभारत) और भागवत गीता (भागवत गीता) की है। कई लोक कथाओं में भी इस कहानी (कहानी) का उल्लेख मिलता है। एक कौवे की गरुड़ से दोस्ती हो गई। दोनों काफी समय तक साथ रहे।...

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आइये जाने हिन्दू संवत्सर के बारे में

क्या होता है संवत्सर ? संवत्सर मूल रूप से वर्ष ही है भारतीय प्रणाली में वर्ष को संवत्सर कहा जाता है हिंदू धर्म बौद्ध धर्म और जैन धर्म के अनुसार कई प्रकार के संवत्सर प्रचलित हैं जैसे विक्रमी संवत...

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जय जय जय हनुमान गोसाई

बेगी हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुम से नहीं जात है टारो । जय जय जय हनुमान गोसाई कृपा करो महाराज । जय जय जय हनुमान गोसाई कृपा करो महाराज । तन में तुम्हरे...

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श्री मन नारायण नारायण नारायण। भजन

श्री मन नारायण नारायण नारायण। भजन भजमन नारायण नारायण नारायण।। श्री मन नारायण नारायण नारायण ,ॐ नारायण नारायण नारायण। लक्ष्मी नारायण नारायण नारायण,ॐ नारायण नारायण नारायण।। गज और...

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शुक्राचार्य द्वारा भगवान शंकर के १०८ नामों का जप

शुक्राचार्य द्वारा भगवान शंकर के १०८ नामों का जप ॐ १. जो देवताओं के स्वामी, २. सुर-असुर द्वारा वन्दित, ३. भूत और भविष्य के महान देवता, ४. हरे और पीले नेत्रों से युक्त, ५. महाबली, ६. बुद्धिस्वरूप, ७....

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माघ पूर्णिमा : आत्मा की प्रकाश की पूर्णिमा या धार्मिक समर्पण की पूर्णिमा

माघ पूर्णिमा व्रत एक हिन्दू धार्मिक व्रत है जो माघ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत हिन्दू परम्परा में महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे संगीत, ध्यान, धर्मिक कार्यों, और दान-धर्म के रूप...

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रघुनंदन दीनदयाल हो तुम श्रीराम तुम्हारी जय होवे

रघुनन्दन दीनदयाल हो श्री राम तुम्हारी जय होवे राजा राम तुम्हारी जय होवे दीनानाथ तुम्हारी जय होवे रघुनाथ तुम्हारी जय होवे सिया राम तुम्हारी जय होवे रघुनन्दन दीनदयाल हो श्री राम तुम्हारी...

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रविवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती, मंत्र और महत्व,

रविवार व्रत कथा प्राचीन काल की बात किसी नगर में एक बुढ़िया रहती थी। वह हर रविवार को नियमित रूप से व्रत करती थी। इसके लिए रविवार के दिन वह सूर्योदय से पहले जागती और स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन की...

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बिल्व या बेल पत्र का महत्व

बिल्व पत्र का भगवान शंकर को प्रिय है। बिल्व पत्र का महत्व बिल्व तथा श्रीफल नाम से प्रसिद्ध यह फल बहुत ही काम का है। यह जिस पेड़ पर लगता है वह शिवद्रुम भी कहलाता है। बिल्व का पेड़ संपन्नता का प्रतीक,...

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वीर हनुमाना अति बलवाना राम नाम रसियो रे,प्रभु मन बसियो रे भजन हिंदी लिरिक्स

वीर हनुमाना अति बलवाना राम नाम रसियो रे,प्रभु मन बसियो रे भजन हिंदी लिरिक्स भक्ति भजन गीत विवरण गीत: - वीर हनुमान अति बलवाना, गायक: - नरिश नरशी, गीत: - नरिश नरशी वीर हनुमाना अति बलवाना, राम नाम रसियो...

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निर्जला एकादशी

निर्जला एकादशी बुधवार, 31 मई 2023 एकादशी तिथि प्रारंभ : 30 मई 2023 को दोपहर 01:07 बजे एकादशी तिथि समाप्त : 31 मई 2023 को दोपहर 01 बजकर 45 मिनट पर एकादशी का व्रत हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ज्येष्ठ मास...

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बजरंग बाण

दोहा-निश्चय प्रेम प्रतीति ते बिनय करै सनमान तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करै हनुमान जय हनुमन्त सन्त हितकारी सुनि लीजै प्रभु विनय हमारी जन के काज विलम्ब न कीजै आतुर दौरि महा सुख दीजै जैसे कूदि...

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सभी कष्टों एवं दुखो के निवारण हेतु सम्पूर्ण सुन्दरकाण्ड पाठ

सुन्दर काण्ड श्लोक : * शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌। रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं...

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जानिए क्यों ? गोस्वामी तुलसीदास ने कारावास में 'लिखी हनुमान चालीसा' !

एक बार अकबर ने गोस्वामी जी को अपने दरबार में बुलाया और उनसे कहा कि मुझे भगवान श्रीराम से मिलवाओ। तब तुलसीदास जी ने कहा कि भगवान श्री राम सिर्फ अपने भक्तों को ही दर्शन देते हैं। यह सुनते ही अकबर ने...

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कैलाश पर्वत एक अनसुलझा रहस्य, कैलाश पर्वत के इन रहस्यों से नासा भी हो चुका है हैरान!

कैलाश पर्वत, यह एतिहासिक पर्वत को आज तक हम सनातनी भारतीय लोग 'शिव का निवास स्थान' मानते हैं। शास्त्रों में भी यही लिखा है कि कैलाश पर शिव का वास है। किन्तु वही नासा जैसी वैज्ञानिक संस्था के लिए कैलाश...

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मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, कन्यापूजन की विधि और आरती

मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि इस दिन मां की पूजा अर्चना करने के लिए विशेष हवन किया जाता है. यह नवरात्रि का आखिरी दिन है तो इस दिन मां की पूजा अर्चना करने के बाद अन्य देवताओं की भी पूजा की जाती है....

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भाई दूज 2023

भाई दूज दिवाली के बाद दूसरे दिन मनाया जाता है। भाई दूज का अर्थ नाम में ही दर्शाया गया है, क्योंकि यह एक भाई और एक बहन के बीच प्यार के रिश्ते को दर्शाता है। इस दिन एक बहन अपने भाई की सफलता और समृद्धि...

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श्री गणेश जी की आरती, पूजा और स्तुति मंत्र

श्री गणेश जी की आरती जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥ जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥ एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥ जय गणेश,...

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पांडव निर्जला एकादशी की कथा

पांडव निर्जला एकादशी की कथा दिशानिर्देश और नियामक एक बार महाराजा युधिष्ठिर के छोटे भाई भीमसेन ने पांडवों के दादा, महान ऋषि श्री व्यासदेव से पूछा कि क्या एकादशी व्रत के सभी नियमों और विनियमों...

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भगवान गणेश की आरती और चालीसा

श्री गणेश जी की चालीसा दोहा जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल। विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥ चौपाई जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥ जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक...

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माँ काली चालीसा

॥दोहा॥ जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार । महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार ॥ ॥ चौपाई ॥ अरि मद मान मिटावन हारी । मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥ अष्टभुजी सुखदायक माता । दुष्टदलन जग में विख्याता...

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श्रीराम चालीसा का प्रतिदिन करें पाठ, खुश होंगे हनुमान जी

| | श्री राम चालीसा | | श्री रघुबीर भक्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी। निशि दिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहीं होई।। ध्यान धरें शिवजी मन मांही। ब्रह्मा, इन्द्र पार नहीं पाहीं।। दूत तुम्हार...

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सोमवती अमावस्या

13 नवंबर को सोमवती अमावस्या है। सोमवती अमावस्या के दिन स्नान दान और पूजा पाठ का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के बाद दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती 13 नवंबर...

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मौनी अमावस्या की पौराणिक व्रत कथा एवं पूजा विधि:

मौनी अमावस्या के साथ कोई विशिष्ट "मौनी व्रत" नहीं जुड़ा है, लेकिन व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक प्रथाओं के हिस्से के रूप में इस दिन उपवास करना या कुछ पूजा विधियों में शामिल होना चुन सकते हैं। यदि आप मौनी...

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देव दिवाली 2023

देव दिवाली देव दिवाली राक्षस त्रिपुरासुर पर भगवान शिव की जीत के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर को हराया था। इस जीत का...

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कार्तिक मास की कथा

कार्तिक मास की कथा एक नगर में एक ब्राह्मण और ब्राह्मणी रहते थे। वे रोजाना सात कोस दूर गंगा,यमुना स्नान करने जाते थे। इतनी दूर आने-जाने से ब्राह्मणी थक जाती थी तब ब्राह्मणी कहती थी कि हमारे एक बेटा...

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बड़े मंगल की तिथियां , महत्व और पूजा विधि

मंगलवार का दिन भगवान हनुमान को समर्पित है। ज्येष्ठ माह में सभी मंगलवार को 'बड़ा मंगल' के रूप में जाना जाता है और हम इस दिन भगवान हनुमान की पूजा करते हैं।इस माह के सभी मंगलो में प्रत्येक मंगलवार...

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दुर्गा सप्तमी - मां कालरात्रि

शुक्रवार, 8 अप्रैल, चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन है। दुर्गा सप्तमी नवरात्रि पर्व का सातवां दिन है। इस दिन मां कालरात्रि की पूजन का विधान है । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां कालरात्रि दुष्टों...

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मौन श्रद्धा: मौनी अमावस्या परंपराएँ

मौनी अमावस्या अपने आध्यात्मिक महत्व के लिए मनाई जाती है और विभिन्न धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं से जुड़ी है। मौनी अमावस्या का उत्सव हिंदू परंपराओं में निहित है, और यह दिन कई कारणों से मनाया जाता...

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दीपावली उत्सव

दिवाली रोशनी का त्योहार है. दिवाली के दिन सभी लोग अपने घरों में दीपक जलाते हैं। लोग अपने घरों को फूलों, दीयों, रंगोली और रोशनी से सजाते हैं। दिवाली एक त्यौहार है जिसे भारत में हिंदू मनाते हैं। यह...