मोक्षदा एकादशी और परम मुक्ति का मार्ग
मोक्षदा एकादशी, जिसे गीता जयंती के नाम से भी जाना जाता है, यह भगवान कृष्ण और भगवद गीता को समर्पित एक शुभ दिन माना जाता है। भगवद गीता, जिसे अक्सर गीता भी कहा जाता है, एक पवित्र हिंदू धर्मग्रंथ है जो भारतीय महाकाव्य महाभारत का हिस्सा है। ऐसा माना जाता है कि मोक्षदा एकादशी वह दिन है जिस दिन भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया था। ये शिक्षाएँ जीवन, कर्तव्य और आध्यात्मिकता के विभिन्न पहलुओं को कवर करती हैं।
भक्त भगवद गीता के श्लोकों को पढ़कर, सत्संग (आध्यात्मिक प्रवचन) में भाग लेकर और अन्य भक्ति गतिविधियों में संलग्न होकर मोक्षदा एकादशी का पालन करते हैं। इसे आत्म-चिंतन, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने और जीवन में अपने कर्तव्य को समझने का दिन माना जाता है। कई हिंदू त्योहारों और अनुष्ठानों की तरह, मोक्षदा एकादशी से जुड़े अनुष्ठान और परंपराएं विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में भिन्न हो सकती हैं। इस दिन व्रत रखना, पूजा करना और धर्मार्थ गतिविधियों में भाग लेना आम प्रथा है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एकादशी और अन्य हिंदू त्योहारों की तारीखें चंद्र कैलेंडर पर आधारित होती हैं, इसलिए मोक्षदा एकादशी का समय हर साल अलग-अलग हो सकता है। पालन की सटीक तारीख निर्धारित करने के लिए लोग अक्सर हिंदू कैलेंडर या धार्मिक अधिकारियों से परामर्श लेते हैं।
मोक्षदा एकादशी की सही तिथि
मोक्षदा एकादशी तिथि दो दिन पड़ रही है. साल 2023 की अंतिम एकादशी 22 और 23 दिसंबर दो दिन मनाई जाएगी. पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 22 दिसंबर 2023 को सुबह 08 बजकर 16 मिनट पर शुरू होगी और समापन 23 दिसंबर 2023 को सुबह 07 बजकर 11 मिनट पर होगा
मोक्षदा एकादशी पर भक्त व्रत रखते हैं, प्रार्थना करते हैं, भगवद गीता पढ़ते हैं और सत्संग (आध्यात्मिक प्रवचन) में भाग लेते हैं। कुछ लोग धर्मार्थ गतिविधियों में भी संलग्न होते हैं और अपने मन और हृदय को शुद्ध करना चाहते हैं। इस दिन को आत्म-चिंतन, आध्यात्मिक विकास और मोक्ष (जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) प्राप्त करने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जाता है। कई हिंदू त्योहारों और अनुष्ठानों की तरह, मोक्षदा एकादशी से जुड़े रीति-रिवाज और अनुष्ठान विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में भिन्न हो सकते हैं।
1. तैयारी:
स्नान या शावर लेकर स्वयं को साफ़ करें।
साफ-सुथरे और पारंपरिक कपड़े पहनें।
एक स्वच्छ और शांत पूजा स्थान स्थापित करें।
2. पूजा सामग्री:
भगवान कृष्ण की छवि या मूर्ति।
भगवद गीता या धर्मग्रंथ की एक प्रति
अगरबत्ती, कपूर और तेल का दीपक।
ताज़ा फूल।
प्रसाद के रूप में फल और मिठाइयाँ।
एक शंख (शंख) और घंटी.
3. पूजा चरण:
मंगलाचरण (प्रणाम):
बाधाओं को दूर करने के लिए भगवान गणेश का आह्वान करके पूजा शुरू करें।
दैवीय शक्तियों का आशीर्वाद पाने के लिए प्रार्थना या मंत्रों का जाप करें।
देवता की स्थापना:
पूजा स्थल पर भगवान कृष्ण की तस्वीर या मूर्ति रखें।
आप भगवान के पास भगवत गीता की एक प्रति भी रख सकते हैं।
दीपक और धूप जलाना:
तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाएं.
जलते हुए दीपक और धूप को भगवान के चारों ओर दक्षिणावर्त दिशा में घुमाएं।
भगवत गीता का पाठ:
भगवत गीता के श्लोक पढ़ें या सुनाएँ। आप अध्याय 2 पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जो विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
फूल और फल चढ़ाएं:
प्रार्थना करते हुए देवता को ताजे फूल, फल और मिठाइयाँ चढ़ाएँ।
भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और कृतज्ञता व्यक्त करें।
आरती:
भगवान के सामने कपूर की लौ लहराते हुए आरती करें।
भगवान कृष्ण की महिमा करते हुए आरती गीत गाएं या सुनाएं।
ध्यान और प्रार्थना:
भगवद गीता की शिक्षाओं पर विचार करते हुए कुछ समय ध्यान में बिताएं।
अपनी व्यक्तिगत प्रार्थनाएँ करें और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त करें।
प्रसाद वितरण:
परिवार के सदस्यों और उपस्थित लोगों के बीच प्रसाद वितरित करके पूजा समाप्त करें।
निष्कर्ष:
अपना आभार और भक्ति व्यक्त करके पूजा समाप्त करें।
आध्यात्मिक विकास और मुक्ति के लिए आशीर्वाद मांगें।
पूजा को अपनी परंपराओं और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के अनुसार अनुकूलित करना याद रखें। इसके अतिरिक्त, किसी जानकार व्यक्ति या पुजारी से परामर्श करने से आपके क्षेत्रीय रीति-रिवाजों और मान्यताओं के आधार पर अधिक विशिष्ट मार्गदर्शन मिल सकता है।
मोक्षदा एकादशी का महत्त्व:
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! मैंने मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी अर्थात उत्पन्ना एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसकी विधि क्या है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष मे आने वाली इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। यह व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिंतामणि के समान सब कामनाएँ पूर्ण करने वाला है। जिससे आप अपने पूर्वजो के दुखों को खत्म कर सकते हैं। इसका माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।
प्रात: वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया। कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूँ। यहाँ से तुम मुझे मुक्त कराओ। जबसे मैंने ये वचन सुने हैं तबसे मैं बहुत बेचैन हूँ। चित्त में बड़ी अशांति हो रही है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता। क्या करूँ?
राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है। अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मूर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते। ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहाँ पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे।
ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद की और भूत विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान माँगने पर भी नहीं दिया। उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा।
तब राजा ने कहा इसका कोई उपाय बताइए। मुनि बोले: हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए।
मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है। इस दिन गीता जयंती मनाई जाती हैं साथ ही यह धनुर्मास की एकादशी कहलाती हैं, अतः इस एकादशी का महत्व कई गुना और भी बढ़ जाता हैं। इस दिन से गीता-पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करें तथा प्रतिदिन थोडी देर गीता अवश्य पढें।
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