हिन्दू धर्म के अनुसार काल या आश्रम गर्भाश्रम, ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम बताये गये हैं
ब्रह्मचर्य (ब्रह्मचारी): यह आश्रम जीवन के पहले चरण का है, जिसमें छात्र या ब्रह्मचारी गुरुकुल में गुरु के निर्देशन में अध्ययन करता है और विद्या प्राप्त करता है। इस आश्रम का मुख्य उद्देश्य ब्रह्मचर्य और विद्या अर्जन है।
गृहस्थ (गृहस्थी): यह आश्रम संसार में परिवार का जीवन जीने वालों के लिए है। इस आश्रम में विवाह के बाद पुत्रवधू सहित पुत्रों की उत्पत्ति और पालन-पोषण, समाजिक कर्तव्यों का निर्वहन आदि शामिल होते हैं।
वानप्रस्थ (वानप्रस्थी): यह आश्रम जीवन के तीसरे चरण का है, जब व्यक्ति संसार से विरक्त होकर अपने परिवार और सामाजिक कर्तव्यों को छोड़कर आध्यात्मिक आत्मसात की ओर अधिगम करता है।
संन्यास (संन्यासी): यह आश्रम जीवन के चौथे चरण का है, जिसमें व्यक्ति संसार से पूरी तरह से विरक्त होकर संयम और साधना के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति के लिए पूरी तरह समर्पित होता है।