भगवान राम और लक्ष्मण की मृत्यु

भगवान राम और लक्ष्मण की मृत्यु

महाकाल का श्रीराम के पास आना

जब श्रीराम के इस धरती पर सभी कर्तव्य पूरे हो गए तब उन्हें सूचना देने स्वयं महाकाल एक तपस्वी के रूप में श्रीराम दरबार में पहुंचे। द्वार पर उनकी भेंट लक्ष्मण से हुई तथा उन्होंने उनसे कहा कि वे तपस्वी अतिबल के दूत हैं तथा एक महत्वपूर्ण कार्यवश वे श्रीराम से मिलने आये हैं। लक्ष्मण श्रीराम की आज्ञा पाकर महाकाल को उनके कक्ष में लेकर गए।

श्रीराम का लक्ष्मण को पहरा देने का आदेश

जब श्रीराम ने महाकाल से उनके यहाँ आने का कारण पूछा तो महाकाल ने कहा कि वे जो संदेश लेकर आये हैं वह अत्यंत गुप्त है। इसलिये जब वे इस संदेश को उन्हें सुना रहे हो तब उस समय उनके कक्ष में कोई ना आने पाए। यदि कोई उन्हें बात करते हुए सुन ले या देख भी ले तो उसे प्राणदंड दिया जाये।

तपस्वी की यह बात सुनकर भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा कि वह द्वारपाल को भेज दे तथा स्वयं कक्ष के द्वार पर पहरा दे। उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि यदि कोई भी उन्हें बात करते हुए सुन लेगा या देख भी लेगा तो अवश्य ही उसे प्राणदंड मिलेगा।

महाकाल का श्रीराम को संदेश

इसके पश्चात महाकाल ने अपने असली रूप में आकर श्रीराम को प्रणाम किया तथा अपने वहां आने का औचित्य बताया। उन्होंने श्रीराम से कहा कि वे भगवान ब्रह्मा के आदेश पर वहां आये हैं। उन्होंने श्रीराम को बताया कि अब उनका इस धरती पर कार्य पूर्ण हो चुका हैं तथा राम रुपी अवतार में उन्होंने अपनी जितनी आयु निश्चित की थी उसके भी समाप्त होने का समय आ गया है। इसलिये अब उनके परमधाम वैकुंठ में जाने का समय निकट आ गया है।

श्रीराम ने भी महाकाल से कहा कि वे यह जानते हैं कि उनका इस धरती पर समय पूर्ण होने वाला हैं तथा वे भी अब अपने धाम लौटना चाहते है। इसलिये वे यह संदेश भगवान ब्रह्मा तक पहुंचा दे।

महर्षि दुर्वासा का आगमन तथा लक्ष्मण का धर्मसंकट

जिस समय लक्ष्मण द्वार पर पहरा दे रहे थे उसी समय महर्षि दुर्वासा वहां आ पहुंचे। उन्होंने उसी समय लक्ष्मण को कहा कि वे उनके आने की सूचना तत्काल श्रीराम को दे। लक्ष्मण ने उनके क्षमा मांगी तथा कहा कि श्रीराम अभी एक आवश्यक कार्य में हैं इसलिये वे अभी उनसे नही मिल सकते। उन्होंने महर्षि दुर्वासा से कोई भी बात उन्हें बताने को कहा अन्यथा श्रीराम की प्रतीक्षा करने को कहा।

यह सुनकर ऋषि दुर्वासा नाराज हो गए तथा उन्होंने कहा कि यदि उन्हें क्रोध आ गया तो वे इसी समय अपनी शक्ति से श्राप द्वारा पूरी अयोध्या को भस्म कर देंगे। लक्ष्मण यह सुनकर धर्मसंकट में फंस गए तथा सोचा कि यदि केवल उनकी मृत्यु से पूरी अयोध्या बच सकती हैं तो उन्हें अपने प्राण दे देने चाहिए।

लक्ष्मण ने दी श्रीराम को दुर्वासा ऋषि के आने की सूचना

लक्ष्मण ऋषि दुर्वासा के आगमन का संदेश लेकर श्रीराम के कक्ष में पहुँच गए तथा उन्हें दुर्वासा ऋषि से मिलने को कहा। लक्ष्मण को वहां देखकर महाकाल अंतर्धान हो गए। श्रीराम भी असमंजस में पड़ गए लेकिन वे लक्ष्मण की दुर्दशा को समझ चुके थे। उन्होंने लक्ष्मण को महर्षि दुर्वासा को अंदर भेजने का आदेश दिया।

लक्ष्मण ने माँगा मृत्यु दंड

इसके बाद भगवान श्रीराम के द्वारा राज्यसभा बुलायी गयी जिसमे महर्षि वशिष्ठ, उनके सभी भाई, मंत्री तथा हनुमान उपस्थित थे। मंत्री सुमंत तथा भरत ने लक्ष्मण को क्षमा कर देने का अनुरोध किया लेकिन लक्ष्मण ने कहा कि यदि राजा का वचन ही झूठा चला जायेगा तो कौन उनकी बात पर विश्वास करेगा। इसलिये लक्ष्मण ने स्वयं के लिए मृत्यु दंड माँगा। यह सुनकर भगवान राम असमंजस में पड़ गए तथा अपने गुरु महर्षि वशिष्ठ से राय मांगी। महर्षि वशिष्ठ ने भी श्रीराम को अपना वचन निभाने को कहा।

भगवान श्रीराम द्वारा लक्ष्मण का त्याग

उस सभा में हनुमान भी उपस्थित थे तथा उन्होंने शास्त्रों का उदाहरण देकर कहा कि श्रीमान (एक सिद्ध पुरुष) तथा साधु का त्याग कर देना उन्हें प्राणदंड देने के समान होता है । महर्षि वशिष्ठ भी इससे सहमत हुए तथा उन्होंने लक्ष्मण का त्याग कर देने को कहा। इसके पश्चात श्रीराम ने लक्ष्मण का परित्याग कर दिया।

लक्ष्मण ने सरयू नदी में ली समाधि

भगवान श्रीराम के द्वारा लक्ष्मण का परित्याग करने के पश्चात वे उनका आशीर्वाद लेकर सरयू नदी में गए तथा अपनी श्वास की गति को रोककर अंतर्धान हो गए समाधि लेने के पश्चात वे अपने धाम वैकुंठ पहुँच गए तथा शेषनाग का रूप ले लिया।

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