शुक्राचार्य कहते हैं कि व्यक्ति अपने चरित्र (गुण) और कर्म (कर्म) जैसी मौलिक अवधारणाओं के आधार पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र बन जाता है। पुस्तक आगे राजा को सलाह देती है कि वह अपनी जाति के बावजूद किसी भी पद पर अपने अधीनस्थों को नियुक्त करे।