ब्रह्म पुराण

ब्रह्म पुराण

ब्रह्म पुराण हिंदू धर्म के 18 पुराणों में से एक प्रमुख पुराण है। इसे पुराणों में महापुराण भी कहा जाता है। पुराणों की दी गयी सूची में इस पुराण को प्रथम स्थान पर रखा जाता है। कुछ लोग इसे पहला पुराण भी मानते हैं। इसमें विस्तार से सृष्टि जन्म, जल की उत्पत्ति, ब्रह्म का आविर्भाव तथा देव-दानव जन्मों के विषय में बताया गया है। इसमें सूर्य और चन्द्र वंशों के विषय में भी वर्णन किया गया है। इसमें ययाति या पुरु के वंश–वर्णन से मानव-विकास के विषय में बताकर राम-कृष्ण-कथा भी वर्णित है। इसमें राम और कृष्ण के कथा के माध्यम से अवतार के सम्बन्ध में वर्णन करते हुए अवतारवाद की प्रतिष्ठा की गई है।

इस पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति, पृथु का पावन चरित्र, सूर्य एवं चन्द्रवंश का वर्णन, श्रीकृष्ण-चरित्र, कल्पान्तजीवी मार्कण्डेय मुनि का चरित्र, तीर्थों का माहात्म्य एवं अनेक भक्तिपरक आख्यानों की सुन्दर चर्चा की गयी है। भगवान् श्रीकृष्ण की ब्रह्मरूप में विस्तृत व्याख्या होने के कारण यह ब्रह्मपुराण के नाम से प्रसिद्ध है। इस पुराण में साकार ब्रह्म की उपासना का विधान है। इसमें 'ब्रह्म' को सर्वोपरि माना गया है। इसीलिए इस पुराण को प्रथम स्थान दिया गया है। पुराणों की परम्परा के अनुसार 'ब्रह्म पुराण' में सृष्टि के समस्त लोकों और भारतवर्ष का भी वर्णन किया गया है।

कलियुग का वर्णन भी इस पुराण में विस्तार से उपलब्ध है। ब्रह्म के आदि होने के कारण इस पुराण को 'आदिपुराण ' भी कहा जाता है। व्यास मुनि ने इसे सर्वप्रथम लिखा है। इसमें दस सहस्र श्लोक हैं। प्राचीन पवित्र भूमि नैमिष अरण्य में व्यास शिष्य सूत मुनि ने यह पुराण समाहित ऋषि वृन्द में सुनाया था। इसमें सृष्टि, मनुवंश, देव देवता, प्राणि, पुथ्वी, भूगोल, नरक, स्वर्ग, मंदिर, तीर्थ आदि का निरूपण है। शिव-पार्वती विवाह, कृष्ण लीला, विष्णु अवतार, विष्णु पूजन, वर्णाश्रम, श्राद्धकर्म, आदि का विचार है।

सम्पूर्ण 'ब्रह्म पुराण' में २४६ अध्याय हैं। इसकी श्लोक संख्या लगभग १०,००० है। इस पुराण की कथा लोमहर्षण सूत जी एवं शौनक ऋषियों के संवाद के माध्यम से वर्णित है। यही कथा प्राचीन काल में ब्रह्मा ने दक्ष प्रजापति को सुनायी थी। 

ब्रह्म पुराण का महत्व

ब्रह्म पुराण का धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व है। साथ ही इसका पर्यटन की दृष्टि से भी महत्व है। इसमें अनेक तीर्थों- भद्र तीर्थ, पतत्रि तीर्थ, विप्र तीर्थ, भानु तीर्थ, भिल्ल तीर्थ आदि का विस्तार से वर्णन मिलता है। इसमें सृष्टि के आरंभ में हुए महाप्रलय के विषय में भी बताया गया है। इसमें मोक्ष-धर्म, ब्रह्म का स्वरूप और योग-विधि की भी विस्तृत जानकारी दी गई है। इसमें सांख्य और योग दर्शन की व्याख्या करके मोक्ष–प्राप्ति के उपायों पर प्रकाश डाला गया है। यह वैष्णव पुराणों में प्रमुख माना गया है।

ब्रह्मपुराण का आरंभ

ब्रह्मपुराण का आरंभ इस कथा के साथ होता है कि- प्राचीन काल की बात है कि नैमिषारण्य में मुनियों का आगमन हुआ। सभी ऋषि-मुनि वहां ज्ञानार्जन के लिए एकत्रित हुए। कुछ समय बाद वहां पर सूतजी का भी आगमन हुआ तो मुनियों ने सूतजी का आदर-सत्कार किया और कहा, हे भगवन् ! आप अत्यन्त ज्ञानी-ध्यानी हैं। आप हमें ज्ञान-भक्तिवर्धक पुराणों की कथा सुनाइए। यह सुनकर सूतजी बोले, आप मुनियों की जिज्ञासा अति उत्तम है और इस समय मैं आपको ब्रह्म पुराण सुनाऊंगा।

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