अग्नि पुराण

अग्नि पुराण

अग्निपुराण

अग्निपुराण पुराण साहित्य में अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। विषय की विविधता एवं लोकोपयोगिता की दृष्टि से इस पुराण का विशेष महत्त्व है। अनेक विद्वानों ने विषयवस्‍तु के आधार पर इसे 'भारतीय संस्‍कृति का विश्‍वकोश' कहा है। अग्निपुराण में त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्‍णु एवं शिव तथा सूर्य की पूजा-उपासना का वर्णन किया गया है। 

इसमें परा-अपरा विद्याओं का वर्णन, महाभारत के सभी पर्वों की संक्षिप्त कथा, रामायण की संक्षिप्त कथा, मत्स्य, कूर्म आदि अवतारों की कथाएँ, सृष्टि-वर्णन, दीक्षा-विधि, वास्तु-पूजा, विभिन्न देवताओं के मन्त्र आदि अनेक उपयोगी विषयों का अत्यन्त सुन्दर प्रतिपादन किया गया है।

इस पुराण के वक्‍ता भगवान अग्निदेव हैं, अतः यह 'अग्निपुराण' कहलाता है। अत्‍यंत लघु आकार होने पर भी इस पुराण में सभी विद्याओं का समावेश किया गया है। इस दृष्टि से अन्‍य पुराणों की अपेक्षा यह और भी विशिष्‍ट तथा महत्‍वपूर्ण हो जाता है।

पद्म पुराण में भगवान् विष्‍णु के पुराणमय स्‍वरूप का वर्णन किया गया है और अठारह पुराण भगवान के 18 अंग कहे गए हैं। उसी पुराणमय वर्णन के अनुसार ‘अग्नि पुराण’ को भगवान विष्‍णु का बायां चरण कहा गया है।

अग्नि पुराण का महत्त्व

पुराण साहित्य में अग्निपुराण अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। साधारण रीति से पुराण को 'पंचलक्षण' कहते हैं, क्योंकि इसमें सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (संहार), वंश, मन्वंतर तथा वंशानुचरित का वर्णन अवश्यमेव रहता है, चाहे परिमाण में थोड़ा न्यून ही क्यों न हो। परंतु अग्निपुराण इसका अपवाद है। प्राचीन भारत की परा और अपरा विद्याओं का तथा नाना भौतिकशास्त्रों का इतना व्यवस्थित वर्णन यहाँ किया गया है कि इसे वर्तमान दृष्टि से हम एक विशाल विश्वकोश कह सकते हैं।

आग्नेय हि पुराणेऽस्मिन् सर्वा विद्याः प्रदर्शिताः

यह अग्नि पुराण का कथन है जिसके अनुसार अग्नि पुराण में सभी विधाओं का वर्णन है। यह अग्निदेव के स्वयं के श्रीमुख से वर्णित है इसलिए यह प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण पुराण है। यह पुराण उन्होंने महर्षि वशिष्ठ को सुनाया था। यह पुराण दो भागों में हैं पहले भाग में ब्रह्म विद्या का सार है। इसको सुनने से देवगण ही नहीं समस्त प्राणी जगत् सुख प्राप्त करता है। विष्णु भगवान के अवतारों का वर्णन है। वेग के हाथ के मंथन से उत्पन्न पृथु का आख्यान है। दिव्य शक्तिमयी मरिषा की कथा है। कश्यप ने अपनी अनेक पत्नियों द्वारा परिवार विस्तार किया उसका वर्णन भी किया गया है।

भगवान् अग्निदेव ने देवालय निर्माण के फल के विषय में आख्यान दिए हैं और चौसठ योगनियों का सविस्तार वर्णन भी है। शिव पूजा का विधान भी बताया गया है। इसमें काल गणना के महत्त्व पर भी प्रकाश डाला गया है। साथ ही इसमें गणित के महत्त्व के साथ विशिष्ट राहू का वर्णन भी है। प्रतिपदा व्रत, शिखिव्रत आदि व्रतों के महत्त्व को भी दर्शाया गया है। साथ ही धीर नामक ब्राह्मण की एक कथा भी है। दशमी व्रत, एकादशी व्रत आदि के महत्त्व को भी बताया गया है।

अग्निपुराण की संक्षिप्त जानकारी

अग्नि पुराण में अग्निदेव ने ईशान कल्प का वर्णन महर्षि वशिष्ठ से किया है। इसमे पन्द्रह हजार श्लोक है। इसके अन्दर पहले पुराण विषय के प्रश्न है फ़िर अवतारों की कथा कही गयी है, फ़िर सृष्टि का विवरण और विष्णुपूजा का वृतांत है। इसके बाद अग्निकार्य, मन्त्र, मुद्रादि लक्षण, सर्वदीक्षा विधा और अभिषेक निरूपण है। 

इसके बाद मंडल का लक्षण, कुशामापार्जन, पवित्रारोपण विधि, देवालय विधि, शालग्राम की पूजा और मूर्तियों का अलग अलग विवरण है। फ़िर न्यास आदि का विधान प्रतिष्ठा पूर्तकर्म, विनायक आदि का पूजन, नाना प्रकार की दीक्षाओं की विधि, सर्वदेव प्रतिष्ठा, ब्रहमाण्ड का वर्णन, गंगादि तीर्थों का माहात्म्य, द्वीप और वर्ष का वर्णन, ऊपर और नीचे के लोकों की रचना, ज्योतिश्चक्र का निरूपण, ज्योतिष शास्त्र, युद्धजयार्णव, षटकर्म मंत्र, यन्त्र, औषधि समूह, कुब्जिका आदि की पूजा, छ: प्रकार की न्यास विधि, कोटि होम विधि, मनवन्तर निरूपण ब्रह्माचर्यादि आश्रमों के धर्म, श्राद्धकल्प विधि, ग्रह यज्ञ, श्रौतस्मार्त कर्म, प्रायश्चित वर्णन, तिथि व्रत आदि का वर्णन, वार व्रत का कथन, नक्षत्र व्रत विधि का प्रतिपादन, मासिक व्रत का निर्देश, उत्तम दीपदान विधि, नवव्यूहपूजन, नरक निरूपण, व्रतों और दानों की विधि, नाडी चक्र का संक्षिप्त विवरण, संध्या की उत्तम विधि, गायत्री के अर्थ का निर्देश, लिंगस्तोत्र, राज्याभिषेक के मंत्र, राजाओं के धार्मिक कृत्य, स्वप्न सम्बन्धी विचार का अध्याय, शकुन आदि का निरूपण, मंडल आदि का निर्देश, रत्न दीक्षा विधि, रामोक्त नीति का वर्णन, रत्नों के लक्षण, धनुर्विद्या, व्यवहार दर्शन, देवासुर संग्राम की कथा, आयुर्वेद निरूपण, गज आदि की चिकित्सा, उनके रोगों की शान्ति, गो चिकित्सा, मनुष्यादि की चिकित्सा, नाना प्रकार की पूजा पद्धति, विविध प्रकार की शान्ति, छन्द शास्त्र, साहित्य, एकाक्षर, आदि कोष, प्रलय का लक्षण, शारीरिक वेदान्त का निरूपण, नरक वर्णन, योगशास्त्र, ब्रह्मज्ञान तथा पुराण श्रवण का फ़ल बताया गया है।

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