तारा (रामायण)

तारा (रामायण)

तारा (रामायण)

तारा हिन्दू महाकाव्य रामायण में वानरराज वालि की पत्नी है। तारा की बुद्धिमता, प्रत्युत्पन्नमतित्वता, साहस तथा अपने पति के प्रति कर्तव्यनिष्ठा को सभी पौराणिक ग्रन्थों में सराहा गया है। अपने पति बाली की मृत्यु के बाद तारा ने जीवन ब्रह्मचर्य से बिताया था ऐसा बाल्मिकी रामायण में स्पष्ट वर्णन किया गया है। देव गुरु बृहस्पति की धर्म पत्नी तारा को हिन्दू धर्म ने पंचकन्याओं में से एक माना है।[1] पौराणिक ग्रन्थों में पंचकन्याओं के विषय में कहा गया है:-

अहिल्या द्रौपदी कुन्ती तारा मन्दोदरी तथा।

पंचकन्या स्मरणित्यं महापातक नाशक॥

(अर्थात् अहिल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा तथा मन्दोदरी, इन पाँच कन्याओं का प्रतिदिन स्मरण करने से सारे पाप धुल जाते हैं)

हालांकि तारा को मुख्य भूमिका में वाल्मीकि रामायण में केवल तीन ही जगह दर्शाया गया है, लेकिन उसके चरित्र ने रामायण कथा को समझनेवालों के मन में एक अमिट छाप छोड़ दी है।

जन्म

कुछ ग्रन्थों के अनुसार वह देवताओं के गुरु बृहस्पति की पौत्री थी। एक कथा के अनुसार समुद्र मन्थन के दौरान चौदह मणियों में से एक अप्सराएँ थीं। उन्हीं अप्सराओं में से एक तारा थी। वालि और सुषेण दोनों मन्थन में देवतागण की मदद कर रहे थे। जब उन्होंने तारा को देखा तो दोनों में उसे पत्नी बनाने की होड़ लगी। वालि तारा के दाहिनी तरफ़ तथा सुषेण उसके बायीं तरफ़ खड़े हो गए। 

तब विष्णु ने फ़ैसला सुनाया कि विवाह के समय कन्या के दाहिनी तरफ़ उसका होने वाला पति तथा बायीं तरफ़ कन्यादान करने वाला पिता होता है। अतः वालि तारा का पति तथा सुषेण उसका पिता घोषित किये गए।

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